...तो कैसा हो?

उलटा लटका तारों से मैं दुनिया देखूं तो कैसा हो
सपनों की रस्सी लटका कर झूला झूलूँ तो कैसा हो

बीते कल को आज में घोलूँ
पीकर मैं आकाश में डोलूँ
जूते गिर जाएँ जो मेरे, चल ना पाऊँ तो कैसा हो

अपना ही कार्टून बनाऊँ
जीभ निकालूँ उसे चिढ़ाऊं
हँसते हँसते गिर जाऊं फिर, उठ ना पाऊँ तो कैसा हो.....

कप में आंसूं भरके रखूँ
किस्से यादें चुनके रखूँ
सारे बीते गुज़रे लम्हे, वापस लाऊँ तो कैसा हो

क्या तुम मेरे गीत सुनोगे
ख़्वाबों का संगीत सुनोगे
आखों से छेड़ूँ मैं स्वर, तुम सुन ना पाओ तो कैसा हो.