जन्मदिन पर

कैलेण्डर तुमने मेरी कहानी गिनती में कह दी है
बिना शब्दों के एकदम सिम्बोलिक तरीके से
सफ़र में माईल स्टोन बना दिए हैं
अलग अलग पार्ट, अलग अलग चैप्टर
जैसे पढ़ना आसान करने के लिए किसी ने
पैराग्राफ बाँट दिए हों किसी लम्बी चिट्ठी में
अब जब तुम्हारे एक और पन्ने को पलट कर आज
मैं दिसंबर वाले पन्ने के थोड़ा और नजदीक पहुच गया हूँ
लगता है जैसे इन पन्नों में पुरानापन आने लगा है
उसी पुरानी डिजाइन ने बोर कर दिया है
अब चमक गायब है पहले जैसी नयी प्रिंटिंग वाली
वो खुशबू भी नहीं आती जो जनवरी में आती थी कागज और सियाही की
धूल ज़्यादा महकती है अब तुमसे
एक टेक्स्चर सा आ गया है धूप सहते सहते
तुम्हारे मुड़े कोने वाले पन्नों पर मैं अपने माथे जैसी लकीरे देखता हूँ
जो हर पन्ने के पलटने के साथ चौड़ी होती जाती हैं
कभी कभी मैं तुम्हारे ऊपर छपी डिजिट्स भूलकर
इन्हीं चौड़ी लकीरों में खो जाता हूँ
और देखता हूँ कि कैसे ये लकीरें हाथ की लकीरों की तरह
तुम पर छपी ढेरों डिजिट्स से होकर गुजरती हैं
और बुन देती हैं उनके बीच एक रहस्यमयी मकडजाल
जिनके बीच फसा हुआ मैं आगे के पन्नों तक पूरा पूरा नहीं पहुच पाता
और इसीलिये पीछे पलटे हुए तुम्हारे पन्नों में
दफन होता रहता हूँ थोड़ा थोड़ा पन्ना दर पन्ना
और आज जब तुम्हारा एक और पन्ना पलट रहा हूँ
मैं हैरान हूँ कि पहले तुम्हारे पन्ने ख़त्म होंगे या मैं ?