नोस्टाल्जिया

वो जाती हुई सी धूप का एक बड़ा टुकड़ा
हम छोड़ आये थे जो उस दिन शाम में
दिल चाहता है, लौट जाऊं, ढूंढ लाऊँ

जो रखे थे किसी छूटी हुई बुनियाद पर
चाय के दो कप और सुस्ताये से लम्हे
फिर से वहीं बैठूं, अधूरा दिन बिताऊँ

वही रस्ते जो हमने पैर से खींचे थे खुद ही
वही रिश्ते जो बस पहली दफा सुलगाये थे
मैं फिर से कश भरूँ ऐसा, कि रस्ते भूल जाऊँ.