हॉरोस्कोप

बादलों से भरी एक खूबसूरत शाम में
छत पर अकेला टहलता हुआ
मैं बुनता हूँ ख़्वाबों की एक सतरंगी रस्सी
और बाँध लेता हूँ अपने पैरों से
बाद में उसी रस्सी का दूसरा सिरा
जा फसेगा घड़ी की सुईयों में !

गर्मियों की एक वीरान दोपहर में
अपने कमरे में औंधे मुंह लेटा हुआ
मैं पढता हूँ एक पुरानी किताब
जिसके एक पन्ने के मुड़े हुए कोने से निकलकर
एक किरदार घुस जाता है मेरे भीतर
मुझे जीवन भर इसके डायलाग दोहराने होंगे !

स्कूल से कोचिंग के रास्ते में
साइकिल के पैडल मारता हुआ
मैं लिखता हूँ उसे एक खयाली ख़त
फिर उसे चबा जाता हूँ सबसे छुपाने के लिए
मैं जीवन भर इसके टुकड़े उगलकर
बनाता रहूंगा नयी नयी कवितायें !