नाटक

झूठ में डूबी हुई दुनिया का नाटक देखिये
सुबह अखबारों में पढ़िए सौ फ़साने झूठ के
रात को टीवी पे सुनिए एक नयी झूठी बहस

आजादियाँ नारों में हैं, गानों में, अफसानों में हैं
पर असलियत में जुर्म है आज़ाद होना
क़ानून की हर दफा में एक सजा है इसके लिए

अपने भीतर झांकना आसाँ नहीं सबके लिए
एक अन्धेरा कुआं है ब्लैक होल जैसा
दिया जो रोशन था, कब का बुझ चुका है

आँख पर ब्लिंकर्स पहने एक पल ठहरे बिना
करोड़ों घोड़े बिना जॉकी के सरपट दौड़ते हैं
ज़िंदगी दौड़ बन गयी है और दुनिया रेस कोर्स