अलविदा

जागा हुआ हूँ सदियों से जैसे,
मैं सो न जाऊं कहीं
हारा थका हूँ, पीछे खडा हूँ,
जो घर लौट जाऊं कहीं
कैसा हो इक रोज़ तुमसे कहे कोई,
कि मैं तो था ही नहीं
भ्रम था तुम्हारा, मन का सहारा मैं,
बस और कोई नहीं

कहानी गढ़ूंगा, मैं फिर से बुनूँगा,
ख़्वाबों की दुनिया नई
टाकुंगा तुमको सितारों के जैसे,
मैं चमकूंगा तुममें कहीं
मैं नगमें लिखूंगा सुबह से रौशन
उदासी भुलाके सभी
मगर क्या पता मेरी आवाज़ तुम तक
पहुचेगी भी या नहीं

साँसों की डोरी पे टिकते नहीं हैं
जिद्दी पतंग हैं ये ख्वाब
उड़ जाते हैं डोर मांझे छुड़ाके
कहीं दूर बादल के पार
ये सपने किसी के भी अपने नहीं हैं
हैं मिलते यहाँ बस उधार
अपनी भी आखों से तुम देख लेना
कभी मेरे जाने के बाद

पूरा कहाँ हूँ, मैं बिखरा हुआ हूँ
बीते पलों में तमाम
ठहरा हुआ हूँ वहीं उस घड़ी में
तुम्हें अपनी बाहों में थाम
जहां ज़िंदगी अपनी खुशियों भरी थी
था गम का न कोई निशान
वहीं उस घड़ी में मुझे ढूढ़ लेना
कभी आये जो मेरी याद.