मम्मी, देखो मुसलमान

पता है आपसे इनता प्रेम क्यों है मुझे. क्योंकि आप में मैं अपना बचपन देखता हूँ. यकीन मानिए बचपन में मैं भी बिलकुल ऐसा ही था. मुझे लगता था मेरे पापा सबसे अच्छे हैं. मेरा घर सबसे बड़ा है, मेरा परिवार-खानदान सबसे महान है. मेरा शहर कानपुर बहुत महान शहर है. मुझे भी आपकी ही तरह अपने हिन्दू होने पर गर्व था और उस पर भी ब्राह्मण होने पर. बचपन में कई बार रावण की तारीफ़ सिर्फ इसलिए किया करता था क्योंकि मैंने सुना था कि वो ब्राह्मण था. मैं भी मंदिर जाता था. हाथ जोड़कर प्रार्थना करता था. एक बार एक त्यौहार पर व्रत भी रखा था.
एक बार मम्मी के साथ बाज़ार से गुजर रहा था तो बुर्का पहनकर जा रही कुछ औरतों को देखकर उनके सामने ही चिल्ला पड़ा था, "मम्मी देखो मुसलमान." मेरी क्या गलती थी, 92 के दंगे हो रहे थे और मेरी उम्र 5 साल थी तब. इतना काफी था, मेरे मन में मुसलमानों के बारे में नफरत भरने के लिए. आपकी ही तरह मैं भी पाकिस्तान से इतनी ही नफरत करता था. बॉर्डर मेरी प्रिय फिल्म थी. बड़ा होकर मैं भी आर्मी में जाना चाहता था जिससे पाकिस्तान को मजा चखा सकूं. पर स्वाभाविक रूप से फिर मैं बड़ा होने लगा. मुझे लगने लगा कि ज़रूरी नहीं है कि मेरी पापा ही सबसे अच्छे हों, ज़रूरी नहीं कि मेरा घर ही सबसे बड़ा हो और मेरा परवार खानदान ही सबसे महान हो. मुझे लगने लगा कि केवल मेरा देश ही नहीं बाकी देश भी अच्छे हैं.
वहाँ भी इंसान रहते हैं और उनसे नफरत करने से कोई फायदा नहीं. उन पर बम गिराने से यही मासूम लोग मरते होंगे. मुझे लगने लगा कि ये क्या बेवकूफी है अपने हिन्दू होने पर ब्राह्मण होने पर गर्व करना. फिर मैंने अपने घर, परिवार, खानदान, जाति, धर्म और देश पर ऐसा बचकाना गर्व करना छोड़ दिया. और मुझे दिखने लगा धर्म के नाम पर मूर्ख बनते लोग. दंगे और नफरत फैलाते धूर्त धार्मिक संत. जाति धर्म के नाम पर होने वाली स्वार्थपूर्ण राजनीति. दूसरी जाति और धर्म में शादी करने पर होने वाली युगलों की हत्याएं. एक दुसरे से अलग करने वाली जाति धर्म की ये दीवारें मुझे पाकिस्तान और चीन से भी ज़्यादा नफरत के काबिल लगने लगीं. मेरी सनी देवल बनने की इच्छा खतम हो गयी. क्योंकि मुझे लगा कि बम फेककर खून बहा कर कुछ नहीं होगा. ये सब तो पहले ही बहुत हो रहा है. इसे रोकने की ज़रूरत है. सिस्टम का हिस्सा बनना नहीं इसे बदलना ज़रूरी है. इसलिए मैं आपकी सोच समझता हूँ. आपका गुस्सा समझता हूँ. पर आश्चर्य भी होता है कि मेरी तरह आप क्यों नहीं बड़े हो पाए. सोचता हूँ, आप अभी भी आर्मी में जाकर पाकिस्तान से हिसाब बराबर करना चाहते होगे. आप अभी भी अपने ब्राहमण या क्षत्रिय होने पर गर्व करते होगे. अपने हिदू याँ मुस्लिम होने पर गर्व करते होंगे. जैसे बच्चे कहते हैं मेरी फ़ुटबाल सबसे अच्छी है, सबसे महंगी. (फेसबुक वॉल से)