यूरोप डायरी #1

यूरोप यात्रा का पहला हफ्ता पूरा हुआ. बल्कि आठ दिन हो गए. बीच में लगातार इवेंट और मीटिंग्स थीं. और उनकी वज़ह से ढेर भर छोटी बड़ी यात्राएं भी थीं. इसलिए कुछ लिख नहीं पाया. वरना सोच के आया था की कुछ कुछ लिखता रहूंगा. मुझे लगा था, ये अच्छा मौक़ा होगा. कुछ नया होगा लिखने को. अभी लन्दन में हूँ, कल कुछ ख़ास नहीं है. इसलिए नींद पूरी न होने का भी डर नहीं है. वरना आजकल नींद की बड़ी शामत है. आज सुबह जीवन में पहली बार बीबीसी के ऑफिस जाने का मौक़ा मिला तो टैक्सी में सो गया. ड्राईवर ने जगाके बताया कि पहुच गए. पहुच के पता लगा की रिकोर्डिंग नहीं लाईव है और सारी नींद हवा हो गयी. एक तो अंगरेजी, ऊपर से बीबीसी और फिर लाईव पैनल. मैं कितना नर्वस था, मैं ही जानता हूँ. लेकिन गनीमत रही की थोड़ा देर से पहुच पाया था इसलिए ज्यादा लंबा शो नहीं बचा था. प्रेजेंटर के अलावा पैनेल में एक अमेरिकी और एक फ्रेंच पत्रकार मौजूद थे. मुझे लगा की ठीक ठाक ही गया. जो मेरे साथी, बाहर बैठे सुन रहे थे, उनको अच्छा भी लगा. बाहर टैक्सी की तो उसमें भी बीबीसी ही चल रहा था. लगा की अपने देश में रेडियो के नाम पे बस गाने ही बचे हैं. सब कुछ कूल कूल सा. हॉट कुछ है ही नहीं. आरजे तो लगता है, कोइ और देश से मंगाए जाते हैं, कैसे तो बोलते हैं. कुछ सीधा सादा है ही नहीं, भले आदमी लायक. पढने लिखने वाले आदमी के लिए भी कुछ रेडिओ होना चाहिए. खैर क्या पता हो भी, मुझे ही न पता हो. सालों से तो रेडियो ट्राई भी नहीं किया.

Read More »

सिनेमा, सेंसरशिप और फ्री स्पीच फिल्म फेस्टिवल

देश में गंभीर फिल्मों के न बनने का कारण सिर्फ बाज़ार की मजबूरियाँ ही नहीं बल्कि सेंसर बोर्ड की तानाशाही भी है. कोइ फिल्मकार नहीं चाहता कि उसकी सालों की मेहनत सेंसर बोर्ड की नापसंदगी की भेट चढ़ जाए और वो कहानी जिसे वो दुनिया को सुनाना चाहता था, सिर्फ उसकी टीम तक ही सिमट जाए और उसकी फिल्म ही एक कहानी बनकर रह जाए. कोइ प्रोड्यूसर या फाईनेंसर ऐसी फिल्म पर क्यों मेहनत और पैसे बर्बाद करना चाहेगा जिसके रिलीज होने पर भी संदेह हो. 

इसलिए कोई आश्चर्य नहीं कि इस देश में गंभीर मुद्दों का ढेर होते हुए भी ज़्यादातर फिल्में बस लोगों को हसाने गुदगुदाने का काम करती हुई ही दिखाई पड़ती हैं. यानी हम तक आप तक बस वही कहानियाँ पहुचती हैं, जिनसे किसी को कोइ फर्क नहीं पड़ता. कोइ आहत नहीं होता, कोई डिस्टर्ब नहीं होता. और इस सबके बीच उन सब मुद्दों पर कोइ काम नहीं हो पाता, जिन पर वाकई होना चाहिए था.

Read More »

मुबारक हो ! अब कार्टून बनाना देशद्रोह नहीं है !!

आखिरकार, ढाई साल बाद उच्च न्यायालय ने मान लिया है कि कार्टून बनाना देशद्रोह नहीं है. उम्मीद है अब मुझे अपने देश प्रेम के लिए सबूत जुटाने की ज़रुरत नहीं पड़ेगी और मैं निश्चिंत होकर सरकार और व्यवस्था की आलोचना यूं ही जारी रख सकूंगा. निश्चित तौर पर इसे एक जीत की तरह देखता हूँ. अपनी ही नहीं उन सबकी भी जिन्होंने मेरी गिरफ्तारी के दौरान सोशल मीडिया पर ही नहीं सडकों पर भी अभिव्यक्ति की आज़ादी का नारा बुलंद किया और एक आन्दोलन सा खडा कर दिया. कार्टून्स को लेकर देशद्रोह का आरोप लगाने को लेकर एक बड़ी बहस खडी हो गयी और चाहे अनचाहे सरकार को बैकफुट पर जाना पडा. वरना कोई मुश्किल नहीं कि शायद मैं आज भी महाराष्ट्र की किसी जेल में सड़ रहा होता और मुझ पर लगे आरोपों और उनके औचित्य की ये बहस बस अदालत के एक छोटे से कमरे तक सिमट कर रह जाती. तब कोर्ट में खुद को डिफेंड करने के लिए वकील की फीस का जुगाड़ करना शायद मेरे जीवन की एक नियमित रस्साकसी बन गया होता. इसका श्रेय जाता है एडवोकेट संस्कार मराठे को, जिन्होंने ये पीआईएल डालकर मुझ पर लगे देशद्रोह के आरोप पर सवाल खड़े किये जिससे मेरे वकील न लेने के फैसले के बाद भी मेरी रिहाई की राह खुल सकी. मैं शुक्रिया अदा करना  मिहिर देसाई और विजय हीरामथ का जिन्होंने इस केस में मुझे रिप्रेसेन्ट किया और बिना किसी आर्थिक फायदे के मेरी और मेरे कार्टून्स की आज़ादी की कानूनी लडाई लड़ी. हांलांकि शुरुआत में मैंने वकील रखने से इनकार कर दिया था, लेकिन आगे की कानूनी प्रक्रिया बिना वकील के संभव नहीं हो पाती.

Read More »

एआईबी रोस्ट पर उठी आपत्तियों पर

सालों से हमारे समाज में ऐसे एसएमएस चल रहे हैं जिनकी भाषा और कंटेंट को एआईबी रोस्ट से कहीं अधिक आपत्तिजनक माना जा सकता है. यूं तो मैंने कभी नॉन वेज जोक्स फारवर्ड नहीं किये लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मोबाइल पर आये ऐसे जोक्स पढ़कर कभी मुझे ज़ोरों की हंसी नहीं आयी. मुझे याद है स्कूल के दिनों में मेरा एक दोस्त ऐसे चुटकुलों में पारंगत था और विशेष व्याख्याओं के साथ नॉन वेज जोक सुनाने की उसकी शैली बड़े बड़े कामेडियंस को फेल करती थी. जब भी मिलता हमें हंसा हंसा कर लोटपोट कर देता. सारे तनाव आखों से आंसू बनकर निकल जाते और हम वाकई रिफ्रेश महसूस करते. मुझे नहीं लगता कि वो अपराधी था या उसे कोर्ट में घसीटे जाने की कोइ आवश्यकता थी. न ही इन चुटकुलों पर हमारे हंसने में कुछ असामान्य था. ये बेहद नार्मल है. विज्ञान की भाषा में भी किसी चुटकुले को सुनकर हंसना ही नार्मल माना जाएगा जबकि इन पर हंसी न आने पर डॉक्टर आपको बीमार कह सकते हैं और आश्चर्य नहीं कि दिमाग के एमआरआई स्कैन समेत कुछ जांचे भी लिख दें. 

Read More »

भारतीय समाज के सन्दर्भ में अभिव्यक्ति की आज़ादी और चार्ली हेब्दो

शार्ली हेब्दो पर हुए हमलों का हमारे देश में टीवी बहसों और सम्पादकीय आलेखों में पुरजोर विरोध हुआ. अभिव्यक्ति की आज़ादी की भी जी भर कर वकालत की गयी. कुछ कार्टूनिस्टों ने साहसी कार्टून्स भी बनाए जो दिखाते थे कि कलम बन्दूक से कहीं ज्यादा ताकतवर है और इसलिए फ्रीडम ऑफ़ स्पीच कभी हथियारों के सामने घुटने नहीं टेकेगी. भारत सरकार ने भी हमलों की निंदा की. फेसबुक और ट्विटर पर बहुतों ने अपने प्रोफाइल पिक्चर भी चेंज कर दिए. कई ने हैश टैग आई एम शार्ली का भी खूब इस्तेमाल किया. लेकिन भारत में सेंसरशिप के बढ़ते हुए मामलों को देखें तो ये विरोध बस एक तमाशा, ढोंग या एक नियमित औपचारिकता से बढ़कर कुछ नहीं है. भारतीय कार्टूनिंग के पितामह कहे जाने वाले शंकर पिल्लई के कार्टून हम एनसीईआरटी की किताबों से निकाल देते हैं. भारतीय कला के सबसे महत्वपूर्ण हस्ताक्षर एम एफ हुसैन देश छोड़ने पर विवश हो जाते हैं और वो विदेशी जमीन पर अपनी आख़िरी सांसें लेते हैं.

Read More »

गुड्डू की कहानी

ये शार्ली हेब्दो, फ्रीडम ऑफ़ स्पीच छोडिये, बहुत टेंशन हो गया है दिमाग में. मेरे कार्टून आपको पसंद नहीं आते, इसलिए एक कहानी सुनाता हूँ आज. कांग्रेस का नाम तो सुना होगा ना आपने. जी हाँ, वही राहुल गांधी वाली कांग्रेस पार्टी. उन्ही के एक कार्यकर्ता की कहानी है ये. एकदम सच्ची कहानी. नाम है गुड्डू.

गुड्डू को अपने कांग्रेसी होने पर गर्व है. कहता है, पक्का कांग्रेसी हूँ. एकदम खानदानी. मेरे दादा कांग्रेस का हिस्सा हुआ करते थे, नेहरु जी के टाइम से. एकदम पक्के वाले. एकदम एक्टिव वाले. मजाल है कि कोई मीटिंग, अधिवेशन, जुलूस या नुक्कड़ सभा मिस हो जाए. एकदम कट्टर कांग्रेसी. ज़ाहिर है उनकी शादी भी एक कांग्रेसी महिला से ही हुई. फिर जो बच्चे हुए वो भी कांग्रेसी ही होने थे.

Read More »

देशद्रोह पर गाईडलाइंस को लेकर बहस

मुझ पर देशद्रोह की धारा (124 A) लगाने के खिलाफ और देशद्रोह पर गाइडलाइंस जारी करने को लेकर फ़ाइल एक पीआईएल पर हाल ही में मुम्बई हाई कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है और ऑर्डर्स रिज़र्व कर लिए हैं. इस सुनवाई के दौरान सरकार की और से एडवोकेट जनरल ने दलील दी है कि "अगर कोई सरकार की किसी नीति का, किसी राजनेता या राजनीतिक पार्टी का विरोध करता है तब तक तो ठीक है, लेकिन अगर कोइ व्यक्ति सीधे सरकार की आलोचना करता है तो ये मामला देशद्रोह के अंतर्गत आयेगा." एडवोकेट जनरल का कहना है, "फ्री स्पीच की सीमा ख़त्म होने और देशद्रोह के अपराध के बीच बहुत बारीक रेखा है."

Read More »

RIP Anshu Mala Jha

Anshu Mala Jha हमारे बीच से चली गयीं. आख़िरी बार, कुछ दिन पहले उनसे अस्पताल मे मुलाक़ात हुई थी. वो ठीक हो रही थीं और बिहार में अपने घर जाकर कुछ दिन आराम करना चाहती थीं. बहुत गंभीर हालत में रहने के बाद रिकवर कर रही थीं. बहुत सी बातें हुईं, काफी सारा हंसी मजाक भी. और आज अचानक पता लगा कि वो चली गयीं, हमेशा के लिए. उनसे पहली मुलाक़ात जंतर मंतर पर दामिनी आंदोलन के दौरान हुई थी.

Read More »

फेसबुक, फतवा और आज़ादी

सुन्नी मुफ्ती 'अब्दुल रहमान नईमुल हलीम फिरंगी महली' का कहना है कि आप फेसबुक पर किसी की तस्वीर नहीं देख सकते हैं और यह फैसला भी नहीं कर कर सकते हैं कि आप दोस्ती करना चाहते हैं। प्यार और मोहब्बत के लिए वास्तविक जीवन में देखिए। इस तरह के आभासी संबंधों का कोई फायदा नहीं है। मुफ्ती चाहते हैं कि नौजवान वास्तविक दुनिया में रहें। काश कि बेहद लंबे नाम वाले ये बेचारे मुफ्ती जान पाते कि वो खुद ही वास्तविक दुनिया से दूर आदम हव्वा की दुनिया में जी रहे हैं.

Read More »

स्मृतिशेष संतोष कोली

साथियों, बहुत दुखद खबर है कि आज संतोष कोली जी हमेशा के लिए हम सब से दूर चली गयीं. अब उनकी वो निर्भीक और निश्चिंत मुस्कराहट हमें कभी देखने को नहीं मिलेगी. अन्ना आंदोलन के सभी मित्रों में संतोष जी मेरी फेवरिट थीं. उनसे मिलकर आपके भीतर भी साहस और सकारात्मकता बढ़ जाती थी. मैं दावे से कह सकता हूँ कि समाज के लिए उनके जैसे निस्वार्थ भाव से काम करने वाले लोग आपको बहुत मुश्किल से देखने को मिलेंगे. 

Read More »

'हिंसा' या 'विकल्पों की अनुपस्थिति' ?

मैं इस बारे में विचार करना चाहता हूँ कि हिंसक क्रांतियां होती ही क्यों हैं. क्यों लोग आसानी से सर पर कफ़न बांधकर निकल पड़ते हैं मरने मारने के लिए. सोचना होगा कि उस हालात में उनके पास एक सहज जीवन की कितनी संभावनाएं बची होती हैं कितना भविष्य उपलब्ध होता है और जितना होता भी है उसकी भी उपेक्षा करके वो हिंसा के मार्ग पर क्यों बढ़ जाते हैं. ध्यान देने की बात है, जिनके हाथों में बंदूकें नहीं हैं वो शांतिप्रिय मिडिल क्लास के लोग भी अपनी फिल्मों में खलनायकों को गोलियों से भून रहे होते हैं.

Read More »

मम्मी, देखो मुसलमान

पता है आपसे इनता प्रेम क्यों है मुझे. क्योंकि आप में मैं अपना बचपन देखता हूँ. यकीन मानिए बचपन में मैं भी बिलकुल ऐसा ही था. मुझे लगता था मेरे पापा सबसे अच्छे हैं. मेरा घर सबसे बड़ा है, मेरा परिवार-खानदान सबसे महान है. मेरा शहर कानपुर बहुत महान शहर है. मुझे भी आपकी ही तरह अपने हिन्दू होने पर गर्व था और उस पर भी ब्राह्मण होने पर. बचपन में कई बार रावण की तारीफ़ सिर्फ इसलिए किया करता था क्योंकि मैंने सुना था कि वो ब्राह्मण था. मैं भी मंदिर जाता था. हाथ जोड़कर प्रार्थना करता था. एक बार एक त्यौहार पर व्रत भी रखा था.

Read More »

कहते हैं, जिसे धारण किया जाए वो धर्म है

ऐसा धर्म बेकार है, जिसका कोई पालन ही नहीं करता. बस धारण कर लेता है. धारण किये किये घूमता रहता है. धारण करके रेप करता है, धारण करके लड़कियां छेड़ता है, धारण किये किये भ्रस्टाचार करता है, ज़रूरतमंद का हक मारता है, जाति पाती के नाम पर अत्याचार करता है. इंसानियत की भी बलि दे देता है धर्म के नाम पर. दूसरों के धर्म से जाति से, देश से नफरत करता है. ये नफरत सिखाने वाला कौन सा धर्म है.

Read More »

धर्म और राजनीतिक दल

धर्म, जाति, परम्परा, संस्कार और मर्यादा से मुक्ति की बात इसलिए ज़रूरी नहीं है कि ये बहुत बुरे हैं. इनमे कुछ बातें हितकर भी हो सकती हैं. पर इनका त्याग इसलिए ज़रूरी है कि इनके होते हमारी आँखें बंद हैं. हमारी दृष्टि निरपेक्ष है ही नहीं. हमने खुद फैसले लेना सीखा ही नहीं. न तो हम में खुद फैसले लेने की आदत बची है ना ही हिम्मत. हम बस दूसरों के पहनाए चश्मे से दुनिया को देखना चाहते हैं. इस्तेमाल न होने से हमारी आखें सूख कर खराब हो गयी हैं. संवेदनाएं मर गयी हैं. सही गलत की पहचान खतम हो गयी है. हम उन नियमों का अनुसरण कर रहे हैं जिनके अनुसरण का फैसला हमने किया भी नहीं था.

Read More »

मुझे हिन्दू होने पर गर्व है :)


मुझे हिन्दू होने पर गर्व है क्योंकि हिंदुओं के शरीर में बह रहा रक्त बाकी धर्म वालों के रक्त से ज्यादा लाल होता है, उसमे हीमोग्लोबिन भी अधिक मात्रा में पाया जाता है. इसलिए मैं भारत के हिन्दू राष्ट्र बन जाने का सपना देख रहा हूँ. मुझे अपने ब्राह्मण होने पर भी गर्व है क्योंकि दूसरी जाति वालों की तुलना में ब्राह्मणों की आत्मा पवित्र होती है और मस्तिष्क तीक्ष्ण होता है. मुझे संस्कृति और मर्यादा जैसे शब्दों से प्यार है और इनकी रक्षा के लिए मैं अपनी जान दे सकता हूँ और दूसरों की ले भी सकता हूँ.

Read More »

दूसरी केरल यात्रा

इस समय केरल में हूँ. आज यहाँ कुछ आर्ट गैलरीज़ देखीं. कई कलाकारों और उनकी कलाकृतियों से मुलाक़ात हुई. सीपीएम सांसद पी राजीव से भी एक कार्यक्रम के दौरान मिलना हुआ और इंटरनेट सेंसरशिप पर भी चर्चा हुई. पी राजीव पिछले साल ग्रीष्म कालीन सत्र के दौरान आई टी एक्ट की कुछ धाराओं के खिलाफ राज्यसभा में एनलमेंट मोशन लाये थे जिसके समर्थन में हमने भी एक अभियान छेड़ा था. यहाँ मुख्यतः एक मलयालम अखबार की 55वीं सालगिरह में शामिल होने के लिये आया था.
यहाँ मुझे कार्यक्रम की शुरुआत भ्रस्टाचार के खिलाफ कार्टून बना कर करनी थी और कोच्ची के दो युवा पत्रकारों और एक युवा विधायक को सम्मानित करना था.

Read More »

मारधाड और एक्शन से भरपूर


साथियों, बहुत से देशप्रेमी मुझे दूर दूर से फोन कर के बता रहे हैं कि मुझे फेसबुक पर अपडेट करना चाहिए कि मैं अफजाल गुरू की फांसी का समर्थन करता हूँ और इससे बहुत खुश हूँ. गनीमत है कि ये लोग मुझसे पार्टी नहीं मांग रहे हैं. नहीं तो अफजाल की तेरहवीं का खर्च भी मुझे ही उठाना पड़ता. इन कथित देशप्रेमियों ने ऐसा न करने पर मेरे खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज कराने की धमकी भी दी है. मुझे तो लगता है बाकी की ज़िंदगी देशद्रोही बनकर ही गुजारनी पड़ेगी.मुझे आश्चर्य है कि अब मैं फेसबुक पर क्या अपडेट करू ये भी मुझे इन लोगों से पूछना पडेगा.

Read More »

न्यूटन का जडत्व का नियम और हमारा समाज

मम्मी एकदिन अखबार में एक खबर पढकर हंस रही थीं. खबर थी, कांशीराम का मंदिर बनेगा. मैंने कहा, कांशीराम ने लोगों को हक दिलाने के लिए बड़ी लड़ाई लड़ी. सामाजिक समानता के लिए संघर्ष किया. तो उनका मंदिर बनाकर पूजा करने में क्या बुराई है. बोलीं, तो उनकी मूर्ती बनाकर पूजा करने से क्या होगा. किसी ने अच्छा काम किया था तो उसके कामों का अनुसरण किया जाए, मंदिर बनाकर पूजा पाठ करने से क्या होगा. मैंने कहा, ऐसे तो राम भी थे. कुछ अच्छा काम किया था. तो उनके कामों का अनुसरण करना चाहिए. उनकी मूर्ती लगाकर पूजा करने से क्या लाभ.

Read More »

आज़ाद लबों को सिलने की तैयारी में है सरकार


एक सर्वे के अनुसार भारत में तीन करोड़ अस्सी लाख लोग फेसबुक इस्तेमाल करते हैं और ट्विटर पर सक्रिय लोगों की संख्या करीब एक करोड़ बीस लाख है। प्रतिशत के हिसाब से देखें तो ट्विटर इस्तेमाल करने वालों की संख्या भारत की कुल जनसंख्या की महज एक प्रतिशत और फेसबुक इस्तेमाल करने वालों की संख्या करीब तीन प्रतिशत आंकी जा सकती है। अब प्रश्न ये उठता है कि महज तीन प्रतिशत लोगों ने ऐसा क्या बखेड़ा खडा कर दिया है कि सरकार अभिव्यक्ति की आजादी की ऐसी तैसी करके इंटरनेट पर सेंसरशिप का ग्रहण लगाने पर तुल गयी है?

Read More »

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी

जगजीत सिंह की एक नज़्म बहुत हिट थी.. बात निकलेगी तो दूर तलक जायेगी. भारत सरकार ने इसे बहुत गहरे से ले लिया और तय किया कि वो बात को निकलने ही नहीं देंगे. अब बात निकलेगी नहीं, आपके मुह में ही दब जायेगी. मुझे इस बात का एहसास तब हुआ जब अन्ना जी के अनशन के पहले ही दिन मुंबई पुलिस क्राइम ब्रांच द्वारा मेरी एंटी करप्शन वेब साईट को बैन कर दिया गया और सबसे ख़ास बात ये रही कि ये फैसला लेने के पहले मुझसे एक बार बात करना तक मुनासिब नहीं समझा गया. एक पुलिस अधिकारी ने स्वयं को संविधान मानते हुए निर्णय लिया कि साईट पर मौजूद कार्टून्स आपत्तिजनक हैं और तुरंत साईट को बैन करा दिया.

Read More »