देशद्रोह पर गाईडलाइंस को लेकर बहस

मुझ पर देशद्रोह की धारा (124 A) लगाने के खिलाफ और देशद्रोह पर गाइडलाइंस जारी करने को लेकर फ़ाइल एक पीआईएल पर हाल ही में मुम्बई हाई कोर्ट ने सुनवाई पूरी कर ली है और ऑर्डर्स रिज़र्व कर लिए हैं. इस सुनवाई के दौरान सरकार की और से एडवोकेट जनरल ने दलील दी है कि "अगर कोई सरकार की किसी नीति का, किसी राजनेता या राजनीतिक पार्टी का विरोध करता है तब तक तो ठीक है, लेकिन अगर कोइ व्यक्ति सीधे सरकार की आलोचना करता है तो ये मामला देशद्रोह के अंतर्गत आयेगा." एडवोकेट जनरल का कहना है, "फ्री स्पीच की सीमा ख़त्म होने और देशद्रोह के अपराध के बीच बहुत बारीक रेखा है."


मुझे ये दोनों ही तर्क अत्यंत मूर्खता पूर्ण मालूम होते हैं और ऐसा बिलकुल नहीं लगता कि सरकार और इस्लामिक आतंकवादियों के विचारों में ज़्यादा फर्क है. ये समझना मुश्किल है कि सरकार की आलोचना देशद्रोह कैसे हो सकती है, जबकि हम राजतंत्र में नहीं रहते और सरकार के साथ राजा और प्रजा वाला संबंध नहीं शेयर करते. इस लोकतंत्र में पॉलिसी मेकिंग की प्रक्रिया का हिस्सा है और इस काम में सरकार और उसकी नीतियों पर हमारी प्रतिक्रियाएं और आलोचनाएं भी अत्यंत महत्वपूर्ण हैं. और जब तक कोइ राजनीतिक साजिश, किसी तरह की बाहरी शक्ति से तालमेल कर हिंसक बल को ओर्गेनाइज़ या प्रयोग करने जैसा कुछ नहीं दिखता. किसी भी तरह की फ्री स्पीच देशद्रोह कतई नहीं हो सकती.

जहां, चार्ली हेब्दो हमले के बाद से सारी दुनिया फ्री स्पीच के प्रति समर्थन जता रही हैं. वहीं महाराष्ट्र सरकार फ्री स्पीच और देशद्रोह के बीच तार जोड़कर उस देश में अभिव्यक्ति को पुनः खतरे में डाल रही है, जहां पहले ही फ्री स्पीच की हालत बहुत पतली है. लोगों का कहना है कि हाई कोर्ट से फिर भी अच्छे आदेशों की अपेक्षा है. संभव है कि ज़ल्द ही सेडीशन को लेकर कुछ महत्वपूर्ण गाइडलाइंस जारी हों और इस तरह कभी भी किसी भी कलाकार के देशद्रोही साबित हो जाने के प्रचालन पर रोक लगे.