एआईबी रोस्ट पर उठी आपत्तियों पर

सालों से हमारे समाज में ऐसे एसएमएस चल रहे हैं जिनकी भाषा और कंटेंट को एआईबी रोस्ट से कहीं अधिक आपत्तिजनक माना जा सकता है. यूं तो मैंने कभी नॉन वेज जोक्स फारवर्ड नहीं किये लेकिन ऐसा भी नहीं है कि मोबाइल पर आये ऐसे जोक्स पढ़कर कभी मुझे ज़ोरों की हंसी नहीं आयी. मुझे याद है स्कूल के दिनों में मेरा एक दोस्त ऐसे चुटकुलों में पारंगत था और विशेष व्याख्याओं के साथ नॉन वेज जोक सुनाने की उसकी शैली बड़े बड़े कामेडियंस को फेल करती थी. जब भी मिलता हमें हंसा हंसा कर लोटपोट कर देता. सारे तनाव आखों से आंसू बनकर निकल जाते और हम वाकई रिफ्रेश महसूस करते. मुझे नहीं लगता कि वो अपराधी था या उसे कोर्ट में घसीटे जाने की कोइ आवश्यकता थी. न ही इन चुटकुलों पर हमारे हंसने में कुछ असामान्य था. ये बेहद नार्मल है. विज्ञान की भाषा में भी किसी चुटकुले को सुनकर हंसना ही नार्मल माना जाएगा जबकि इन पर हंसी न आने पर डॉक्टर आपको बीमार कह सकते हैं और आश्चर्य नहीं कि दिमाग के एमआरआई स्कैन समेत कुछ जांचे भी लिख दें. 


इसलिए एक शो आयोजित करके कुछ एडल्ट कामेडी परफोर्म करना भी मुझे कतई क्राइम नहीं लगता, वो भी तब, जबकि दर्शकों ने इस शो का हिस्सा बनने का निर्णय स्वयं लिया हो, ये जानते बूझते कि कार्यक्रम का आयोजक एक ऐसा ग्रुप है जिसका नाम ही आपत्तिजनक है. अब रही बात इसका वीडियो इंटरनेट पर अपलोड करने की. तो वीडियो की शुरुआत ही चेतावनी के साथ होती. फिर शुरुआती वाक्यों में ही ईवेंट का होस्ट वहाँ उपस्थित दर्शकों से स्पष्ट अपील करता है कि अगर वो आसानी से ओफेंड हो जाते हैं तो वहां से जा सकते हैं. ऐसे में दर्शकों को पर्याप्त रूप से सावधान कर दिया गया है, ठीक सिगरेट के डिब्बे पर छपी सरकारी चेतावनी की तरह. अब इस सबके बाद भी कोई पूरा वीडियो देखता चला जाता है और आहत पर आहत होता जाता है तो ये माना जाना चाहिए कि आहत होने में उसकी कुछ ख़ास दिलचस्पी है. एक बड़ा तर्क दिया जाता है बच्चों पर पड़ने वाले प्रभाव का. तो साहब इंटरनेट की दुनिया में इतना कुछ बुरा और बहुत बुरा है कि उसके सामने ऐसे हज़ारों रोस्ट और टोस्ट भी खड़े नहीं हो सकते. तब तर्क आता है वीडियो में स्टार्स की मौजूदगी को लेकर. कहा जाता है लोग अपने स्टार्स को फालो करने लग जाते हैं. पर इसका मतलब ये तो नहीं कि हम सेलेब्रिटीज को सामाजिक दबाव में दोहरी ज़िंदगी जीने को विवश कर दें. अगर वो स्वयं ऐसा संयम स्वीकार करते हैं तो ये उनका निर्णय है पर इसके लिए उन्हें बाध्य करना उनके व्यक्तिगत जीवन को क्षति पहुचाना है.

जिस देश में स्टार्स को भगवान मानते हों और उनके मंदिर बनाये जाते हों, स्टार्स से कुछ भी इंसानों जैसा एक्स्पेक्ट नहीं किया जाता. इसके पहले के स्टार्स ज़्यादा सावधान थे. न तो उनमे इतनी हिम्मत थी कि अपने व्यक्तित्व के असली पहलू अपने फैन्स के रूबरू लाकर व्यावसायिक असफलता का रिस्क ले सकें और न ही अपने फैन्स पर इतना विश्वास कि उनसे ये उम्मीद रख सकें कि फैन्स अपने स्टार्स को भी इंसान के रूप में देखना स्वीकार कर पायेंगे. 

इस देश में, जहां हर व्यक्ति दिखावे और पाखण्ड की बीमारी का शिकार है और अपने असली चेहरे को समाज के सामने उजागर करने से परहेज करता है, एआईबी रोस्ट में मैं ह्यूमर ही नहीं साहस भी देखता हूँ. भले ही व्यक्तिगत रूप से मैं ऐसे व्यंग्य करना या इनका शिकार बनना पसंद न करूं पर इसमें कोई सामाजिक हानि देखने में असमर्थ महसूस करता हूँ और एआईबी की अभिव्यक्ति की आजादियों का निःशर्त समर्थन करता हूँ.