गुड्डू की कहानी

ये शार्ली हेब्दो, फ्रीडम ऑफ़ स्पीच छोडिये, बहुत टेंशन हो गया है दिमाग में. मेरे कार्टून आपको पसंद नहीं आते, इसलिए एक कहानी सुनाता हूँ आज. कांग्रेस का नाम तो सुना होगा ना आपने. जी हाँ, वही राहुल गांधी वाली कांग्रेस पार्टी. उन्ही के एक कार्यकर्ता की कहानी है ये. एकदम सच्ची कहानी. नाम है गुड्डू.

गुड्डू को अपने कांग्रेसी होने पर गर्व है. कहता है, पक्का कांग्रेसी हूँ. एकदम खानदानी. मेरे दादा कांग्रेस का हिस्सा हुआ करते थे, नेहरु जी के टाइम से. एकदम पक्के वाले. एकदम एक्टिव वाले. मजाल है कि कोई मीटिंग, अधिवेशन, जुलूस या नुक्कड़ सभा मिस हो जाए. एकदम कट्टर कांग्रेसी. ज़ाहिर है उनकी शादी भी एक कांग्रेसी महिला से ही हुई. फिर जो बच्चे हुए वो भी कांग्रेसी ही होने थे.
एकदम पक्के कांग्रेसी. उनमे से जो लड़कियां थीं, उन्हें कुछ सम्मानित कांग्रेसी घरों में ब्याह दिया गया और जो लड़के थे उनके लिए सुन्दर और संस्कारी कांग्रेसी लड़कियां ढूंढी गयीं. मेरे पिता भी उनमे से ही थे. एक सुन्दर कांग्रेसी लडकी के साथ उन्होंने घर बसाया और मुझ समेत तीन सुन्दर कांग्रेसी बच्चों को जन्म दिया. मेरी दो बहनों के लिए सुयोग्य कांग्रेसी वर तलाश कर उनकी शादियाँ कर दी गयीं. अब मेरी ही बारी है. मेरा परिवार मेरे लिए एक सुयोग्य कांग्रेसी लडकी की तलाश कर रहा है. ज़ल्द ही मैं भी शादी करके कुछ सुन्दर कांग्रेसी बच्चे पैदा करूंगा. जिन्हें अपने कांग्रेसी होने पर गर्व होगा.

पर कल से गुड्डू कुछ परेशान सा है. भाजपा के किसी कार्यकर्ता ने उसे कहा कि तुम निहायत बेवक़ूफ़ इंसान हो. बड़ा सनकी परिवार है तुम्हारा. ये क्या बात हुई कि दादा कांग्रेसी थे, तो पूरा खानदान कांग्रेसी हो गया. तुम्हारे जैसों की वज़ह से ही देश का ये हाल है, लोकतंत्र का ये हाल है. अरे कभी जानने की कोशिश करो कि कांग्रेस के सिद्धांत क्या हैं, भाजपा के क्या हैं. आम आदमी पार्टी के भी सुन लो. सबकी पॉलिसी को समझो. उसूलों को समझो. तब पार्टी ज्वाइन करो, देख समझ के. मन ना करे तो कोइ मत करना. देश में ज़्यादा आबादी ऐसे लोगों की है, जिन्होंने कभी कोइ पार्टी ज्वाइन नहीं की. चुनाव आने पर पिछले अनुभवों के आधार पर किसी एक पार्टी को चुनते हैं, जिसकी नीतियां और सिद्धांत उन्हें पसंद आते हैं. लेकिन ये क्या मूर्खता है कि जन्म से कांग्रेसी बने फिरते हो. अपने बच्चों को भी यूं ही कांग्रेसी बना डालोगे. अब कल से बेचारा गुड्डू समझ नहीं पा रहा कि क्या करे. उसके बाप दादों ने जो तरीका अपनाया था वो चुने या उस भाजपा वाले की बात माने. उसने जब ये बात अपने कुछ कांग्रेसी मित्रों को बतायी तो उन्होंने कहा, ये सब भाजपा वाले मूर्ख हैं. ये सब कहीं सोच-विचार के होता है. जहां इश्वर ने पैदा कर दिया. वहीं के हो गए. ये सब इंसान के हाथ में थोड़ी है. रही बात लोकतंत्र की, पॉलिसी की, प्रशासन की. तो वो सब तो जैसा चल रहा है, वैसे ही चलेगा. हम लोग ये सोच विचार के चक्कर में पड़ गए. तो रोजी रोटी की लड़ाई कौन लडेगा. गुड्डू को ये बातें सुनकर बहुत अच्छा लगा. उसकी सारी परेशानी जाती रही और उसे फिर से अपने कांग्रेसी होने पर गर्व महसूस होने लगा. उसने तुरंत फेसबुक स्टेटस अपडेट किया... "गर्व से कहो, कांग्रेसी हो"

अगर आप इस कहानी में "कांग्रेसी" शब्द को "हिन्दू / मुस्लिम / सिख / ईसाई" या किसी भी धर्म के नाम से रिप्लेस कर दें. तो आप पायेंगे कि आपके भीतर भी एक गुड्डू रहता है. प्यारा सा, क्यूट सा एकदम इनोसेंट सा गुड्डू.